गजबकी याद शक्ति वाले वलियल्लाह की बचपन की कहानी islam religion history
गजबकी याद शक्ति वाले वलियल्लाह की बचपन की कहानी
मुल्के शाम की बात हैं। जिसे आज सीरिया के नाम से जाना जाता है। सीरिया में एक शहर है जिसे दमिश्क कहा जाता है।
सातवीं हिजरी सदी में एक लड़का था। उनकी गहरी याद-दाश्त थी। एक बार वह कुछ भी सुनता था, तो उसे आसानी से याद कर लेता था।
यह सीरिया के हल्ब शहर में एक बुजुर्ग लड़के को सूचना दी गई थी। और वे लड़के से मिलने जाना चाहते थे। और वे लड़के से मिलने के लिए दमिश्क आए।
एक बुजुर्ग एक टेलर की दुकान पर गये। और लड़के से मिलने के लिए विनंती की। दर्जी ने कहा। आप थोड़ी देर बैठे वह अभी यहाँ से गुजरेगा। यह उस लड़के का नित्यक्रम है।
और वह बुजुर्ग के सामने से एक मकतब के बच्चोकी टुकड़ी निकली।उस तुकड़ीमे वह बच्चा भी था। उस बच्चे के हाथमे एक स्लेट थी।
उस बच्चे को देखकर दरजी ने बुज़ुर्ग को कहा यही वो बच्चा हे जिनका आप इंतज़ार कर रहे थे। यह सुनते ही वह बुज़ुर्ग अपनी जगह पर खड़े हो गए।और उस बच्चे को बुलाया।
और पूछा आप के हाथ में क्या है।उस बच्चेने कहा इस में मेरा सबक लिखा हुआ है।बुजुर्ग ने कहा बेटा आपको तो आपका सबक याद होगाना।
बच्चेने कहा हां मुझे याद है।बाद में उस बुज़ुर्ग बच्चे को कहा बेटा इस स्लेटको साफ़ कर दो।बच्चे ने उस स्लेट को साफ़ कर दिया।बाद में उस बुज़ुर्ग ने उसी स्लेटमे कुछ हदीसे लिखी।
और उस हदीस को पढ़ने को कहा।उस बच्चेने जट से सारी हदीसे मुह पे सुना दी।उस बच्चे की याद दाश्त देख कर बुज़ुर्ग दंग रह गए।और उनके मुह से यह शब्द निकल गए।
"अगर अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने लंबी ज़िन्दगी अता फरमाई तो जरूर बड़े होकर महान आलिमे दिन बनेगा"
यह बुज़ुर्ग के शब्द आगे जाकर सही हुए। वह बच्चा आलिमे दिन ही नहीं बल्कि महान इमाम भी बने। क्या आप जानते हैं कि वह लड़का कौन था?
यह हाफिज इब्न तैमियह रहमतुल्लाही अलैहि, इल्मीदीन के महान इमाम थे।जो सातवीं हिजरी शताब्दी में हो गये थे।
आपका असली नाम अहमद है और आपके अब्बाजी का नाम अब्दुल हलीम है, लेकिन आप अपने उपनाम "इब्ने तैमियह" से बेहतर जानते हैं।
हाफिज इब्ने तैमिया का जन्म तुर्की के हररान शहर में हिजरीसन 661 में हुआ था। उस समय, रविवार रबीउल के पहले महीने का 10 वां दिन था।
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गजबकी याद शक्ति वाले वलियल्लाह की बचपन की कहानी
मुल्के शाम की बात हैं। जिसे आज सीरिया के नाम से जाना जाता है। सीरिया में एक शहर है जिसे दमिश्क कहा जाता है।
सातवीं हिजरी सदी में एक लड़का था। उनकी गहरी याद-दाश्त थी। एक बार वह कुछ भी सुनता था, तो उसे आसानी से याद कर लेता था।
यह सीरिया के हल्ब शहर में एक बुजुर्ग लड़के को सूचना दी गई थी। और वे लड़के से मिलने जाना चाहते थे। और वे लड़के से मिलने के लिए दमिश्क आए।
एक बुजुर्ग एक टेलर की दुकान पर गये। और लड़के से मिलने के लिए विनंती की। दर्जी ने कहा। आप थोड़ी देर बैठे वह अभी यहाँ से गुजरेगा। यह उस लड़के का नित्यक्रम है।
और वह बुजुर्ग के सामने से एक मकतब के बच्चोकी टुकड़ी निकली।उस तुकड़ीमे वह बच्चा भी था। उस बच्चे के हाथमे एक स्लेट थी।
उस बच्चे को देखकर दरजी ने बुज़ुर्ग को कहा यही वो बच्चा हे जिनका आप इंतज़ार कर रहे थे। यह सुनते ही वह बुज़ुर्ग अपनी जगह पर खड़े हो गए।और उस बच्चे को बुलाया।
और पूछा आप के हाथ में क्या है।उस बच्चेने कहा इस में मेरा सबक लिखा हुआ है।बुजुर्ग ने कहा बेटा आपको तो आपका सबक याद होगाना।
बच्चेने कहा हां मुझे याद है।बाद में उस बुज़ुर्ग बच्चे को कहा बेटा इस स्लेटको साफ़ कर दो।बच्चे ने उस स्लेट को साफ़ कर दिया।बाद में उस बुज़ुर्ग ने उसी स्लेटमे कुछ हदीसे लिखी।
और उस हदीस को पढ़ने को कहा।उस बच्चेने जट से सारी हदीसे मुह पे सुना दी।उस बच्चे की याद दाश्त देख कर बुज़ुर्ग दंग रह गए।और उनके मुह से यह शब्द निकल गए।
"अगर अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने लंबी ज़िन्दगी अता फरमाई तो जरूर बड़े होकर महान आलिमे दिन बनेगा"
यह बुज़ुर्ग के शब्द आगे जाकर सही हुए। वह बच्चा आलिमे दिन ही नहीं बल्कि महान इमाम भी बने। क्या आप जानते हैं कि वह लड़का कौन था?
यह हाफिज इब्न तैमियह रहमतुल्लाही अलैहि, इल्मीदीन के महान इमाम थे।जो सातवीं हिजरी शताब्दी में हो गये थे।
आपका असली नाम अहमद है और आपके अब्बाजी का नाम अब्दुल हलीम है, लेकिन आप अपने उपनाम "इब्ने तैमियह" से बेहतर जानते हैं।
हाफिज इब्ने तैमिया का जन्म तुर्की के हररान शहर में हिजरीसन 661 में हुआ था। उस समय, रविवार रबीउल के पहले महीने का 10 वां दिन था।
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