दिल्ही के सुल्तान वलीयुल्लाह,inspirational short stories about life
दिल्ही का बड़ा मैदान लोगों से भरा हुवा था । मैदान में हिन्दुस्तान के मशहूर वलियुल्लाह हज़रत कुत्बुद्दीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाहि अलयहि का जनाज़ा रखा हुआ था ।
चारों तरफ मातम छाया हुआ था । सब के चहेरे गमगीन थे । उदास थे । जब नमाज़े जनाज़ा का वक्त हुआ तो सभी लोग नमाज़े जनाज़ा पढने के लिये सफ लगा कर | खडे हो गए ।
इतने में एक आदमी सफों को चीरता हुआ हज़रत कुत्बुद्दीन बख्तियार रहमतुल्लाहि अलयहि के जनाज़े के पास पहुंचा और उस ने लोगो से कहाँ . . . " मुज़े ख्वाजा कुत्बुद्दीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाहि अलयहिने एक वसियत की है । मैं वह वसियत लोगों तक पहुंचाना में चाहता हूँ ।
" यह सुनते ही सब लोग खामोश हो गए । सब चूप हो गए । फिर उस आदमी ने कहाँ . . .
" मुज़े ख्वाजा साहबने वसियत की है कि मेरे जनाजे की नमाज़ वह आदमी पढाए जिस में चार खूबियाँ हो ।
पहली खूबी . . .
जिंदगी में कभी उसकी नमाज़ की तकबीरे उला छूटी न हो ।
दूसरी खूबी . . .
कभी भी उस की तहज्जुद की नमाज़ न गई हो ।
तीसरी खूबी . . .
कभी उस ने पराई औरत को बुरी नज़र से देखा न हो ।
चोथी खूबी . . .
कभी उस की नमाज़े असर की चार सुन्नते छूटी न हो ।
यह वसियत सुनते ही पूरे मैदान में सन्नाटा छा गया । सब खामोश हो कर एक दूसरे को देखने लगे कि कौन अल्लाह का बंदा आगे बढ़ता है ।
थोडी देर के बाद भीड में से एक आदमी रोता हुआ आगे बढा और ख्वाजा साहब के जनाजे के पास पहुंचा । फिर जनाज़े की चादर हटाते हुए कहने लगा . . . “ ख्वाजा साहब ! आप तो अल्लाह की बारगाह में चले गए , लेकिन मेरा राज़ खोल गए ।
" उस के बाद उस ने लोगो से कहाँ . . . " अल्लाह की कसम ! मुज़ में यह चारों खूबीयाँ मौजूद है । " फिर उस आदमी ने जनाजे की नमाज़ पढाई ।
जानते हो ख्वाजा साहब की नमाज़े जनाज़ा पढानेवाला वह शरीअतो - सुन्नत का पाबंद और नेक आदमी कौन था ? वह थे दिल्ही के सुल्तान शम्सुद्दीन अल्तमश रहमतुल्लाहि अलयहि ।
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दिल्ही का बड़ा मैदान लोगों से भरा हुवा था । मैदान में हिन्दुस्तान के मशहूर वलियुल्लाह हज़रत कुत्बुद्दीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाहि अलयहि का जनाज़ा रखा हुआ था ।
चारों तरफ मातम छाया हुआ था । सब के चहेरे गमगीन थे । उदास थे । जब नमाज़े जनाज़ा का वक्त हुआ तो सभी लोग नमाज़े जनाज़ा पढने के लिये सफ लगा कर | खडे हो गए ।
इतने में एक आदमी सफों को चीरता हुआ हज़रत कुत्बुद्दीन बख्तियार रहमतुल्लाहि अलयहि के जनाज़े के पास पहुंचा और उस ने लोगो से कहाँ . . . " मुज़े ख्वाजा कुत्बुद्दीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाहि अलयहिने एक वसियत की है । मैं वह वसियत लोगों तक पहुंचाना में चाहता हूँ ।
" यह सुनते ही सब लोग खामोश हो गए । सब चूप हो गए । फिर उस आदमी ने कहाँ . . .
" मुज़े ख्वाजा साहबने वसियत की है कि मेरे जनाजे की नमाज़ वह आदमी पढाए जिस में चार खूबियाँ हो ।
पहली खूबी . . .
जिंदगी में कभी उसकी नमाज़ की तकबीरे उला छूटी न हो ।
दूसरी खूबी . . .
कभी भी उस की तहज्जुद की नमाज़ न गई हो ।
तीसरी खूबी . . .
कभी उस ने पराई औरत को बुरी नज़र से देखा न हो ।
चोथी खूबी . . .
कभी उस की नमाज़े असर की चार सुन्नते छूटी न हो ।
यह वसियत सुनते ही पूरे मैदान में सन्नाटा छा गया । सब खामोश हो कर एक दूसरे को देखने लगे कि कौन अल्लाह का बंदा आगे बढ़ता है ।
थोडी देर के बाद भीड में से एक आदमी रोता हुआ आगे बढा और ख्वाजा साहब के जनाजे के पास पहुंचा । फिर जनाज़े की चादर हटाते हुए कहने लगा . . . “ ख्वाजा साहब ! आप तो अल्लाह की बारगाह में चले गए , लेकिन मेरा राज़ खोल गए ।
" उस के बाद उस ने लोगो से कहाँ . . . " अल्लाह की कसम ! मुज़ में यह चारों खूबीयाँ मौजूद है । " फिर उस आदमी ने जनाजे की नमाज़ पढाई ।
जानते हो ख्वाजा साहब की नमाज़े जनाज़ा पढानेवाला वह शरीअतो - सुन्नत का पाबंद और नेक आदमी कौन था ? वह थे दिल्ही के सुल्तान शम्सुद्दीन अल्तमश रहमतुल्लाहि अलयहि ।
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