मुहर्रम का मतलब होता है " काविले एहतेराम " यानी इस महीने के एहतेराम में हर तरह के गुनाह , रस्म व रिवाज और बिदआत व खुराफात से बचने का ख़ास एहतेमाम करना चाहिए । हजरत मुफ्ती मुहम्मद शफ़ी साहब रह . फरमाते हैं : “ तमाम अंबिया अलै . की शरीअतें इस बात पर मुत्तफ़िक हैं के इन चार महीनों रजब जी - कअदह , जिल हिज्जह और मुहर्रम ) में हर इबादत सवाब ज़्यादा होता है और इनमें कोई गुनाह करे तो उसका वबाल और अज़ाब भी ज़्यादा होता है । ( मआरिफुल कुरमान )
गुनाहों , रस्म व रिवाज और विदआत व खुराफात से बचने का आसान तरीक़ा ये है के जो कुछ करना चाहते हों : पहले उलमा से पूछ लें . . . . लोगों को देखकर या उनके कहने पर ना करें । इस मुक़द्दस महीने में गुनाहों से बचते हवे करने के दो काम हैं : पहला काम : नफ्ली रोजे रखना । रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया : अफजल तरीन रोजे रमजान के बाद माहे मुहर्रम के रोज़े हैं । ( मुस्लिम )
एक रिवायत में है ; जो शख्स मुहर्रम के महीने में एक रोज़ा रखेगा उसको हर रोज़े के बदले में तीस रोजों का सवाब मिलेगा । ( तबरानी )
नीज़ आशोरा यानी १० मुहर्रम को रोज़ा रखने की ख़ास फ़ज़ीलत हदीस में आयी है । चुनांचे रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का इर्शाद है : मुझे उम्मीद है के आशोरा के दिन का ( १० मुहर्रम )
रोजा गुजिश्ता एक साल के गुनाहों का कफ्फारा हो जाएगा । ( मुस्लिम )
नोट : आशोरा के सिर्फ एक रोज़े पर किफ़ायत करना मकरूह ( तन्ज़ीही )
है ; लेकिन सवाब उसका भी मिलेगा ।
इसलिए आशोरा के रोजे के साथ एक दिन पहले या एक दिन बाद में भी रोज़ा रख लेना चाहिए । नोट : नफ्ली या आशोरा का रोज़ा रखें तो सवाल्व की बात है लेकिन अगर कोई शख्स नफ्ली रोजों का एहतेमाम ना करता हो तो उसको हरगिज़ हक़ीर ना समझे ।
दूसरा काम : १० मुहर्रम को घरवालों पर खाने पीने में वुसअत करना यानी रोज़ाना के खाने से अच्छा खाना खिलाना ।
हदीस में है ; जो शख्स आशोरा के दिन अपने अहल व अयाल पर खाने पीने के सिलसिले में बुसअत करेगा तो अल्लाह तआला पूरे साल उसके रिज्क में वुसअत व बरकत अता फरमाएंगे । मुहर्रम के बारे में चंद क़ाबिले तवज्जोह बातें
1 ) इस महीने को मनहूस और गम का महीना ना समझें , ये तो बरकत वाला महीना है ।
2 ) इस महीने में शादी बियाह करने में कोई हरज नहीं बल्के इसमें शादी करने से और बरकत होगी । बरकत हासिल करने के लिए शादी सादगी से शरीअत के मताबिक करनी चाहिए । चाहे किसी भी महीने में की जाए ।
3 ) शरीअत में जिनके लिए जैसी ज़ीनत करना जाएज़ है , मुहर्रम में भी वैसी ही जाएज़ है ।
4 ) माहे मुहर्रम की निस्बत पर शरबत और दूध वगैरा की सबीलें लगाना मना है ।
5 ) मुहर्रम की निस्बत पर खिचड़ा या हलवा बनाना दुरुस्त नहीं है ।
6 ) ताजिया उठाना या उसमें मदद करना बिल्कुल मना है ।
7 ) मर्सियाख्वानी करना सहीह नहीं है ।
8 ) मुहर्रम की निस्बत पर सोग मनाना दुरुस्त नहीं है । अल्लाह तआला हम मुसलमानों को इस मोहतरम महीने की नाक़द्री से बचाए और अपने पसंदीदा कामों की तौफीक़ बख्शे । आमीन
गुनाहों , रस्म व रिवाज और विदआत व खुराफात से बचने का आसान तरीक़ा ये है के जो कुछ करना चाहते हों : पहले उलमा से पूछ लें . . . . लोगों को देखकर या उनके कहने पर ना करें । इस मुक़द्दस महीने में गुनाहों से बचते हवे करने के दो काम हैं : पहला काम : नफ्ली रोजे रखना । रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया : अफजल तरीन रोजे रमजान के बाद माहे मुहर्रम के रोज़े हैं । ( मुस्लिम )
एक रिवायत में है ; जो शख्स मुहर्रम के महीने में एक रोज़ा रखेगा उसको हर रोज़े के बदले में तीस रोजों का सवाब मिलेगा । ( तबरानी )
नीज़ आशोरा यानी १० मुहर्रम को रोज़ा रखने की ख़ास फ़ज़ीलत हदीस में आयी है । चुनांचे रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का इर्शाद है : मुझे उम्मीद है के आशोरा के दिन का ( १० मुहर्रम )
रोजा गुजिश्ता एक साल के गुनाहों का कफ्फारा हो जाएगा । ( मुस्लिम )
नोट : आशोरा के सिर्फ एक रोज़े पर किफ़ायत करना मकरूह ( तन्ज़ीही )
है ; लेकिन सवाब उसका भी मिलेगा ।
इसलिए आशोरा के रोजे के साथ एक दिन पहले या एक दिन बाद में भी रोज़ा रख लेना चाहिए । नोट : नफ्ली या आशोरा का रोज़ा रखें तो सवाल्व की बात है लेकिन अगर कोई शख्स नफ्ली रोजों का एहतेमाम ना करता हो तो उसको हरगिज़ हक़ीर ना समझे ।
दूसरा काम : १० मुहर्रम को घरवालों पर खाने पीने में वुसअत करना यानी रोज़ाना के खाने से अच्छा खाना खिलाना ।
हदीस में है ; जो शख्स आशोरा के दिन अपने अहल व अयाल पर खाने पीने के सिलसिले में बुसअत करेगा तो अल्लाह तआला पूरे साल उसके रिज्क में वुसअत व बरकत अता फरमाएंगे । मुहर्रम के बारे में चंद क़ाबिले तवज्जोह बातें
1 ) इस महीने को मनहूस और गम का महीना ना समझें , ये तो बरकत वाला महीना है ।
2 ) इस महीने में शादी बियाह करने में कोई हरज नहीं बल्के इसमें शादी करने से और बरकत होगी । बरकत हासिल करने के लिए शादी सादगी से शरीअत के मताबिक करनी चाहिए । चाहे किसी भी महीने में की जाए ।
3 ) शरीअत में जिनके लिए जैसी ज़ीनत करना जाएज़ है , मुहर्रम में भी वैसी ही जाएज़ है ।
4 ) माहे मुहर्रम की निस्बत पर शरबत और दूध वगैरा की सबीलें लगाना मना है ।
5 ) मुहर्रम की निस्बत पर खिचड़ा या हलवा बनाना दुरुस्त नहीं है ।
6 ) ताजिया उठाना या उसमें मदद करना बिल्कुल मना है ।
7 ) मर्सियाख्वानी करना सहीह नहीं है ।
8 ) मुहर्रम की निस्बत पर सोग मनाना दुरुस्त नहीं है । अल्लाह तआला हम मुसलमानों को इस मोहतरम महीने की नाक़द्री से बचाए और अपने पसंदीदा कामों की तौफीक़ बख्शे । आमीन
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